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 अर्जुन पुरस्कार खिलाड़ियों को दिये जाने वाला एक पुरस्कार है जो भारत सरकार द्वारा खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिये दिया जाता है।  इस पुरस्कार का प्रारम्भ 1961 में हुआ था। पुरस्कार स्वरूप पंद्रह लाख रुपये की राशि, अर्जुन की कांस्य प्रतिमा और एक प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। अर्जुन पुरुस्कार? (Arjuna Award Full List 2024) ओजस प्रवीण देवताले (तीरंदाजी) अदिति गोपीचंद स्वामी (तीरंदाजी) मुरली श्रीशंकर (एथलेटिक्स) पारुल चौधरी (एथलेटिक्स) मोहम्मद हुसामुद्दीन (मुक्केबाजी) आर वैशाली (शतरंज) मोहम्मद शमी (क्रिकेट) अनुश अग्रवाल (घुड़सवारी) दिव्यकृति सिंह (घुड़सवारी ड्रेसेज) दीक्षा डागर (गोल्फ) कृष्ण बहादुर पाठक (हॉकी) सुशीला चानू (हॉकी) शीतल देवी (पैरा तीरंदाजी) इलूरी अजय कुमार रेड्डी (ब्लाइंड क्रिकेट) प्राची यादव (पैरा कैनोइंग) ऐश्वर्य प्रताप सिंह तोमर (शूटिंग) पवन कुमार (कबड्डी) रितु नेगी (कबड्डी) नसरीन (खो-खो) पिंकी (लॉन बाउल्स) ऐश्वर्य प्रताप सिंह तोमर (शूटिंग) ईशा सिंह (शूटिंग) हरिंदर पाल सिंह संधू (स्क्वैश) अयहिका मुखर्जी (टेबल टेनिस) सुनील कुमार (कुश्ती) एंटीम (कुश्ती) नाओरेम रोशिब

राजस्थान-के-प्रमुख-लोक-सम्प्रदाय

 राजस्थान-के-प्रमुख-लोक-सम्प्रदाय (पार्ट-1) 🔰


👉 सभी धर्मों के अनुयायी प्राचीन काल से ही यहां निवास करते है । सगुण व निर्गुण भक्ति धारा का समन्वय इस भूमि की विशेषता रही है । राजस्थान के प्रमुख सम्प्रदाय निम्न प्रकार है :- 


1. वल्लभ सम्प्रदाय :- वैष्णव सम्प्रदाय में कृष्ण उपासक कृष्ण वल्लभी या वल्लभ कहलाये । कृष्ण भक्ति के बाल स्वरूप के इस मत की स्थापना वल्लभाचार्य द्वारा 16वीं सदी के प्रारम्भिक दशक में की गई । उन्होने वृन्दावन में श्रीनाथ मन्दिर की स्थापना की । नाथद्वारा (राजसमन्द) में वल्लभ सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ है । वल्लभाचार्यजी की देश के विभिन्न भााजस्थान-के-प्रमुख-लोक-सम्प्रदाय (पार्ट-1) 🔰


👉 सभी धर्मों के अनुयायी प्राचीन काल से ही यहां निवास करते है । सगुण व निर्गुण भक्ति धारा का समन्वय इस भूमि की विशेषता रही है । राजस्थान के प्रमुख सम्प्रदाय निम्न प्रकार है :- 


1. वल्लभ सम्प्रदाय :- वैष्णव सम्प्रदाय में कृष्ण उपासक कृष्ण वल्लभी या वल्लभ कहलाये । कृष्ण भक्ति के बाल स्वरूप के इस मत की स्थापना वल्लभाचार्य द्वारा 16वीं सदी के प्रारम्भिक दशक में की गई । उन्होने वृन्दावन में श्रीनाथ मन्दिर की स्थापना की । नाथद्वारा (राजसमन्द) में वल्लभ सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ है । वल्लभाचार्यजी की देश के विभिन्न भागों में स्थित चौरासी बैठकों में से राजस्थान में एकमात्र बैठक पुष्कर में स्थित है । इस सम्प्रदाय की विभिन्न पीठे निम्न है - 


1. मथुरेश जी, कोटा 

2. विट्ठल नाथ जी, नाथद्वारा 

3. गोकुल नाथ जी, गोकुल 

4. गोकुल चन्द्र जी कामवन, भरतपुर 

5. द्वारिकाधीश जी कांकरौली (राजसमन्द) 

6. बालकृष्ण जी, सूरत (गुजरात) 

7. मदन मोहन जी कामवन (भरतपुर) 


इस प्रकार पुष्टीमार्गीय सम्प्रदाय की अधिकांश पीठें राजस्थान में स्थित है। इस सम्प्रदाय में मन्दिर को हवेली, दर्शन को झांकी तथा ईश्वर की कृपा को पुष्टि कहा जाता है, इस कारण यह सम्प्रदाय पुष्टिमार्गी सम्प्रदाय भी कहलाता है। वल्लभ सम्प्रदाय को लोकप्रिय बनाने का श्रेय आचार्य वल्लभ के पुत्र विट्ठलदास द्वारा स्थापित "अष्टछाप कवि मण्डली" को दिया जाता है । 


2. निम्बार्क सम्प्रदाय :- आचार्य निम्बार्क द्वारा स्थापित यह वैष्णव दर्शन "हंस सम्प्रदाय" के नाम से जाना जाता है । दक्षिण के तेलगू ब्राह्मण निम्बार्क ने द्वैताद्वैत दर्शन का प्रचार किया । द्वैताद्वैत को भेदाभेद या सनक सम्प्रदाय भी कहते है । राजस्थान में वैष्णव संत आचार्य निम्बाक्र के अनुयायियों की प्रधान पीठ सलेमाबाद (किशनगढ़) में स्थित है । भारत में मुख्य पीठ "वृन्दावन" में है । राजस्थान में इस मत का प्रचार परशुराम देवाचार्य ने किया । 


3. शक्ति सम्प्रदाय :- शक्ति मतावलम्बी शक्ति दुर्गा की पूजा विभिन्न रूपों में करते है । क्षत्रिय समाज में 52 शक्ति पीठों की पूजा की जाती है । 


4. गौड़ीय सम्प्रदाय :- इसके प्रवृतक गौरांग महाप्रभु चैतन्य थे। राजस्थान में आमेर राजपरिवार ने गोविन्द देवजी के मन्दिर का निर्माण करवाया तथा गौड़ीय सम्प्रदाय को विशेष महत्व दिया । ब्रज क्षेत्र में करौली में मदन मोहन जी का प्रसिद्ध मन्दिर है ।


5. वैष्णव सम्प्रदाय :- विष्णु को इष्ट मानकर उसकी आराधना करने वाले वैष्णव कहलाये । इस सम्प्रदाय में ईश्वर प्राप्ति हेतु भक्ति, कीर्तन, नृत्य आदि को प्रधानता दी गई है । वैष्णव भक्तिवाद के कई सम्प्रदायों का अविर्भाव हुआ। 


6. रामानन्दी सम्प्रदाय :- इस सम्प्रदाय के प्रमुख संस्थापक 15वी. सदी में रामानन्द थे । इसकी प्रधान पीठ गलताजी में है । इनके द्वारा उत्तरी भारत में प्रवर्तित मत रामानन्द सम्प्रदाय कहलाया जिसमें ज्ञानमार्गी रामभक्ति का बाहुल्य था । कबीर, धन्नाजी, पीपाजी, सेनानाई, सदनाजी, रैदास आदि इनके प्रमुख शिष्य थे। जयपुर नरेश सवाई मानसिंह ने रामानन्द सम्प्रदाय को संरक्षण दिया एवं "राम रासा” (राम की लीला) ग्रन्थ लिखवाया । यह सम्प्रदाय राम की पूजा कृष्ण की भांति एक रसिक नायक के रूप में करते है। रामानन्द के शिष्य पयहारी दास जी ने नाथ पंथ का प्रभाव समाप्त कर दिया । 


7. नाथ सम्प्रदाय :- नाथ पंथ के रूप में शैव मत का एक नवीन रूप पूर्व मध्य काल में उद्भव हुआ । यह वैष्णव सम्प्रदाय की ही एक शाखा है । नाथ मुनि इसके संस्थापक थे । शाक्त सम्प्रदाय जब अपने तांत्रिक सिद्धों व अभिचार से बदनाम हो गया तो इसकी स्थापना हुई । जोधपुर के महामन्दिर में मुख्य पीठ है । ये हठयोग साधना पद्धति पर बल देते थे । मत्स्येन्द्र नाथ, गोपी चन्द, भर्तृहरि, गोरखनाथ आदि इस पंथ के प्रमुख साधु हुए । राजस्थान में नाथ पंथ की दो प्रमुख शाखाएँ है। 

1. बैराग पंथ :- इसका केन्द्र पुष्कर के पास राताडूंगा है।


2. माननाथी पंथ :- इसका प्रमुख केन्द्र जोधपुर का महामन्दिर है जो मानसिंह ने बनवाया था ।

  

8. शैव सम्प्रदाय :- भगवान शिव की उपसना करने वाले शैव कहलाते है। कापालिक सम्प्रदाय में भैरव को शिव का अवतार मानकर पूजा की जाती है। इस सम्प्रदाय के साधु तांत्रिक व शमशानवासी होते है और अपने शरीर पर भस्म लपेटते है । मध्यकाल तक शैव मत के चार सम्प्रदायों पाशुपात, लिंगायत या वीर शैव एवं कश्मीरक का अविर्भाव हो चुका था । पाशुपात सम्प्रदाय का प्रवर्तक दण्डधारी लकुलीश को माना गया है ।गों में स्थित चौरासी बैठकों में से राजस्थान में एकमात्र बैठक पुष्कर में स्थित है । इस सम्प्रदाय की विभिन्न पीठे निम्न है - 


1. मथुरेश जी, कोटा 

2. विट्ठल नाथ जी, नाथद्वारा 

3. गोकुल नाथ जी, गोकुल 

4. गोकुल चन्द्र जी कामवन, भरतपुर 

5. द्वारिकाधीश जी कांकरौली (राजसमन्द) 

6. बालकृष्ण जी, सूरत (गुजरात) 

7. मदन मोहन जी कामवन (भरतपुर) 


इस प्रकार पुष्टीमार्गीय सम्प्रदाय की अधिकांश पीठें राजस्थान में स्थित है। इस सम्प्रदाय में मन्दिर को हवेली, दर्शन को झांकी तथा ईश्वर की कृपा को पुष्टि कहा जाता है, इस कारण यह सम्प्रदाय पुष्टिमार्गी सम्प्रदाय भी कहलाता है। वल्लभ सम्प्रदाय को लोकप्रिय बनाने का श्रेय आचार्य वल्लभ के पुत्र विट्ठलदास द्वारा स्थापित "अष्टछाप कवि मण्डली" को दिया जाता है । 


2. निम्बार्क सम्प्रदाय :- आचार्य निम्बार्क द्वारा स्थापित यह वैष्णव दर्शन "हंस सम्प्रदाय" के नाम से जाना जाता है । दक्षिण के तेलगू ब्राह्मण निम्बार्क ने द्वैताद्वैत दर्शन का प्रचार किया । द्वैताद्वैत को भेदाभेद या सनक सम्प्रदाय भी कहते है । राजस्थान में वैष्णव संत आचार्य निम्बाक्र के अनुयायियों की प्रधान पीठ सलेमाबाद (किशनगढ़) में स्थित है । भारत में मुख्य पीठ "वृन्दावन" में है । राजस्थान में इस मत का प्रचार परशुराम देवाचार्य ने किया । 


3. शक्ति सम्प्रदाय :- शक्ति मतावलम्बी शक्ति दुर्गा की पूजा विभिन्न रूपों में करते है । क्षत्रिय समाज में 52 शक्ति पीठों की पूजा की जाती है । 


4. गौड़ीय सम्प्रदाय :- इसके प्रवृतक गौरांग महाप्रभु चैतन्य थे। राजस्थान में आमेर राजपरिवार ने गोविन्द देवजी के मन्दिर का निर्माण करवाया तथा गौड़ीय सम्प्रदाय को विशेष महत्व दिया । ब्रज क्षेत्र में करौली में मदन मोहन जी का प्रसिद्ध मन्दिर है ।


5. वैष्णव सम्प्रदाय :- विष्णु को इष्ट मानकर उसकी आराधना करने वाले वैष्णव कहलाये । इस सम्प्रदाय में ईश्वर प्राप्ति हेतु भक्ति, कीर्तन, नृत्य आदि को प्रधानता दी गई है । वैष्णव भक्तिवाद के कई सम्प्रदायों का अविर्भाव हुआ। 


6. रामानन्दी सम्प्रदाय :- इस सम्प्रदाय के प्रमुख संस्थापक 15वी. सदी में रामानन्द थे । इसकी प्रधान पीठ गलताजी में है । इनके द्वारा उत्तरी भारत में प्रवर्तित मत रामानन्द सम्प्रदाय कहलाया जिसमें ज्ञानमार्गी रामभक्ति का बाहुल्य था । कबीर, धन्नाजी, पीपाजी, सेनानाई, सदनाजी, रैदास आदि इनके प्रमुख शिष्य थे। जयपुर नरेश सवाई मानसिंह ने रामानन्द सम्प्रदाय को संरक्षण दिया एवं "राम रासा” (राम की लीला) ग्रन्थ लिखवाया । यह सम्प्रदाय राम की पूजा कृष्ण की भांति एक रसिक नायक के रूप में करते है। रामानन्द के शिष्य पयहारी दास जी ने नाथ पंथ का प्रभाव समाप्त कर दिया । 


7. नाथ सम्प्रदाय :- नाथ पंथ के रूप में शैव मत का एक नवीन रूप पूर्व मध्य काल में उद्भव हुआ । यह वैष्णव सम्प्रदाय की ही एक शाखा है । नाथ मुनि इसके संस्थापक थे । शाक्त सम्प्रदाय जब अपने तांत्रिक सिद्धों व अभिचार से बदनाम हो गया तो इसकी स्थापना हुई । जोधपुर के महामन्दिर में मुख्य पीठ है । ये हठयोग साधना पद्धति पर बल देते थे । मत्स्येन्द्र नाथ, गोपी चन्द, भर्तृहरि, गोरखनाथ आदि इस पंथ के प्रमुख साधु हुए । राजस्थान में नाथ पंथ की दो प्रमुख शाखाएँ है। 

1. बैराग पंथ :- इसका केन्द्र पुष्कर के पास राताडूंगा है।


2. माननाथी पंथ :- इसका प्रमुख केन्द्र जोधपुर का महामन्दिर है जो मानसिंह ने बनवाया था ।

  

8. शैव सम्प्रदाय :- भगवान शिव की उपसना करने वाले शैव कहलाते है। कापालिक सम्प्रदाय में भैरव को शिव का अवतार मानकर पूजा की जाती है। इस सम्प्रदाय के साधु तांत्रिक व शमशानवासी होते है और अपने शरीर पर भस्म लपेटते है । मध्यकाल तक शैव मत के चार सम्प्रदायों पाशुपात, लिंगायत या वीर शैव एवं कश्मीरक का अविर्भाव हो चुका था । पाशुपात सम्प्रदाय का प्रवर्तक दण्डधारी लकुलीश को माना गया है 


राजस्थान के प्रमुख लोक- संप्रदाय 🔰


9. राजाराम सम्प्रदाय :-


▪️इस सम्प्रदाय के प्रर्वतक संत राजा राम थे


▪️जातिगत संकीर्णता से ऊपर उठकर मानवता का संदेश देने वाले इस सम्प्रदाय का प्रारम्भ राजाराम ने किया 


▪️इन्होने विश्नोई सम्प्रदाय की तरह हरे वृक्ष नही काटने तथा वृक्ष लगाने का संदेश दिया। 


10. नवल सम्प्रदाय :-


▪️इसके संस्थापक संत नवलदास जी थे


▪️इनका जन्म नागौर के हस्सोलाव गाँव में हआ!


▪️इनका प्रमुख मन्दिर जोधपुर में है। 


11. गुदड सम्प्रदाय 


▪️इस सम्प्रदाय के प्रमुख संस्थापक संतदास जी थे । 


▪️इस सम्प्रदाय की प्रधान गददी दांतडा (भीलवाड़ा) में है । 


▪️सतदास जी गुदड़ी से बने कपड़े पहनते थे इसलिये इस सम्प्रदाय का नाम गुदड़ी सम्प्रदाय पड़ा


12. चिश्ती सम्प्रदाय :- 


▪️भारत में इस सम्प्रदाय के संस्थापक ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती है। 


▪️इन्होने अजमेर को चिश्ती सिलसिले का केन्द्र बनाया। 


▪️य गरीब नवाज के नाम से विख्यात है। 1236 ई. में इनकी अजमेर में मृत्यु हो गई थी। 


▪️मोहम्मद गौरी ने इन्हे सुल्तान-उल-हिन्द की उपाधि दी।


▪️शख अहमद शैबानी, शैख खिज्र, ख्वाजा जिया नक्शबी आदि ने नागौर में सूफी मत का प्रचार किया। 


13. निरंजनी सम्प्रदाय :- 


▪️इस सम्प्रदाय के संस्थापक हरिदास जी सांखला राजपूत के घर में हुआ।


 ▪️एक साधु के उपदेश से डकैती छोड़कर ये साधना में लीन हो गये।


▪️काढ़ा गाँव में फाल्गुन में वार्षिक मेला लगता है।


▪️यह सम्प्रदाय निरंजन शब्द की उपासना पर बल देते थे।


▪️यह मूर्तिपूजा व सगुण उपासना का विरोध नहीं करते ।


▪️ इनकी दो शाखएं है - 

1. निहंग जो विरक्त है 

2. घरबारी जो गृहस्थ है।

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